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अगर आज के समाज पर द्र्ष्टिपात करें तो जहाँ देखो अशांति का बातावरण है और तो और अपनों के बीच तक नफरत की दीवारें खड़ी हो चुकी हैं I शायद ही कोई व्यक्ति होगा जिसे अपने आस-पड़ोस, ऑफिस, नाते -रिश्तेदार या मित्रों से शिकायत न होगी I इसका कारण भी बहुत बड़ा नहीं है बस लोग दूसरों की जिन्दगी में ताक- झाँक और व्यंगबाजी करना छोड़ दें तो माहौल एकदम उलट हो जाएगा I आज- कल लोग अपने दुःख से दुखी नहीं होते लेकिन दूसरों के जरा से सुख से भी उनको कष्ट होता रहता है I वे अपने दुखों को दूर करने के बजाए इस जुगत में लगे रहते हैं कि दूसरा कैसे परेशान हो ,स्वयं के जरा से स्वार्थपूर्ती हेतु दूसरे का बड़े से बड़ा नुकसान करने से भी गुरेज नही करते I
आज इंसान का मकसद बस इतना सा रह गया है कि वो जो कर रहा है वह ही सही है बाकी सब गलत है, भले ही वो खुद गलत हैं लेकिन सब उसी की बात को ध्यान से सुनें ,मानें और प्रशंसा करें I आत्मप्रशंसा करने से उसे इतनी फुर्सत नहीं होती कि दूसरे की बात भी सुन सके I बेशर्मी की हद तो यह हो गई कि कुछ लोगों ने यह दृढ -प्रतिज्ञा कर ली है और अभ्यास भी ,कि अपनी आत्मप्रशंसा में बस बोले जाओ सामने वाले को कुछ बोलने का मौका मत ही दो , अगर सामने वाला भी उन्ही जैसा है तो कहने ही क्या I और सामने अगर समझदार व्यक्ति होगा तो चुप रहना ही बेहतर समझता है और ऐसे लोंगो से बचने की कोशिश करता है I
अधिकतर लोग भाग्य को भी मानते हैं परन्तु अलग नजरिये से उनका मानना है कि जो कुछ उन्हें मिला है वो उनकी मेहनत का फल है और जो दूसरे के पास वह उसे भाग्य से मिला है I भाग्य को न मानने बाली एक महिला से भाग्य और कर्म को लेकर बात हो रही थी उस महिला से भाग्य और ईश्वर की परिभाषा नए रूप में सुनने को मिली तो सभी दंग रह गये , उसने कहा ,,,,,,,,मेरे बच्चे अकसर मुझसे कहते हैं -लोग हमसे कुछ न कुछ मांगने क्यों आते रहते हैं ? इतने ढीठ हैं मना करने के बाद भी आते रहते हैं मैंने बच्चों से कहा ,,,,,,,,,, यही तो भाग्य है ,एक हमारा भाग्य है जो बह हमारे दरवाज़े तक आते हैं और उनका अपना भाग्य है जो हमारे आगे हाथ फैलाते हैं i रही बात ईश्वर की तो पैसा ही ईश्वर है और जो इस कंडीशन में है ईश्वर को उसके साथ रहना ही पड़ेगा I
क्या बात है ! तेरे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं
क़माल है ,फिर भी तुझे यकीन नहीं I
आश्चर्य नहीं होना चाहिए, अहंकारी व्यक्ति होते ही ऐसे हैं फिर उनके मानसिक दिवालियेपन का ही पता चलता है I जमाना कितना भी बदल गया हो लेकिन आज भी सौ प्रतिशत सच्चाई इसी में है की भरा हुआ घड़ा कभी नहीं छलकता ,अपने बड़- बोलेपन से इंसान कुछ देर के लिए बड़ा बन सकता है आखिर दूसरो की नजरो में उसे गिरना ही होता है I
कबीरदास जी ने सही ही कहा था -बुरा जो देखन मै चला, बुरा न मिलिया कोय
जो मन खोजा आपना ,मुझे बुरा न कोय I
समाज-सेवा जैसा कठिन काम सबके बस का नहीं है यदि हम दूसरों के प्रति सही सोच ही रखने लगें तो यही सबसे बड़ी समाज–सेवा होगी I
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