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जब पकिस्तान की कमान परवेज़ मुशर्रफ के हाथो में थी. तब उन्होंने बीबीसी हिंदी के फ़ोन- इन कार्यक्रम में दुनिया भर से आई फोन काल्स के जबाब दिए थे .उन्हीं के मुल्क से आई फोन कॉल से पूछा गया था – जनाब राष्ट्रपति साहब टमाटर बहुत महंगे हो रहे हैं ,आम आदमी की थाली तक कैसे पहुँचेगें ? मुशर्रफ़ साहब ने बड़ी बेफिक्री के साथ कहा था -किसने कहा है आप से टमाटर खाने को ? जब टमाटर खरीदने की औकात नहीं है तो मत खाइए . एक और व्यक्ति ने जब पूछा -साहब मेरे छ: बच्चे हैं महंगाई इतनी बढ गई है कैसे उनके पेट पालूंगा ? मुशर्रफ साहब थोड़े तल्ख़ अंदाज़ में बोले -क्या जरुरत थी इतने बच्चे पैदा करने की ?अब उनके पेट मैं थोड़े ही पालूंगा .
अब जब महंगाई अपने देश में बढ रही है आम आदमी त्राहि -त्राहि कर रहा है .अपने लोकतान्त्रिक देश में हमारे नेता ऐसे जबाब तो नहीं देते हैं मगर ऐसा सोचते जरुर होंगे . सांसद अपना बेतन बढवाने के लिए संसद में हंगामा करते हैं तो लगता है सबसे ज्यादा गरीब ये ही हैं ,लेकिन इस देश में जो वास्तव में गरीब हैं उनका क्या ? जो नेता महंगाई के लिए मध्यम वर्ग या मीडिया को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं उन्हें महंगाई दिखाई नहीं दे रही है .कालाबाजारियों से कुछ के हाथ तो मजबूत हो ही रहें होंगे बाकी जनता जाए भाड़ में .जनता की यादाश्त बहुत कमजोर होती है सब कुछ भूलकर उन्हें फिर चुन लेगी ,तो क्या करना जो हो रहा है अच्छा हो रहा है .
जब मुशर्रफ मियां सत्ता में थे दुनिया- भर को उन्होंने अपनी उंगली पर नचाया था .नाहर वाली हवेली के बबुआ में वाकई कोई बात तो थी, सच कहना हो या झूठ डंके की चोट पर कहने की हिम्मत थी, हमारे देश में तो ऐसा कोई भी नेता नहीं है .
एक दुश्मन भी तो लगता है फ़रिश्ता यारो I
जब कोई दोस्त मिल कर दगा देता है II
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