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अपनी दादी से सुना था पचास साल पुरानी बात है. एक सत्रह साल के जुआखोर बेटे ने अपनी विधवा माँ को बेंच दिया था .जब ये बात माँ को पता चली तो वो नदी में कूद गयी .नदी से निकालने वालों ने उन्हें उनके मायके पहुंचा दिया .वहां बेटा भी आ धमका .नाना -नानी ,मामा -मामी को उलटी पट्टी पढ़ाई तो बेचारी माँ की किसी ने नहीं सुनी आख़िरकार उसने फाँसी लगा कर जान दे दी .जब मैंने यह बात सुनी तो विश्वास नहीं हुआ .मैंने जिसको भी बताया सबने यही कहा -एक बेटा ऐसा कैसे कर सकता है ?पर यह सच बात है . कोई विश्वास कर भी कैसे सकता है .बेटे या पति से अपने प्रति किसी भयंकर षड्यंत्र के बारे में कोई भी स्त्री कभी कल्पना भी नहीं कर सकती .लेकिन फिर भी हमारे महान देश के महान लोगों दुआरा ऐसा होता है .हम दुनिया से बेहतर होने का दावा करते हैं तब लगता है जैसे हम ही मानव हैं बाकी सब दानव हैं .दुनिया तरक्की में हमसे बहुत आगे है .नीलआर्मस्ट्रांग, युरीगाग्रिन तो हम नहीं बन सके .राकेश शर्मा ,कल्पना चावला ,सुनीता विलयम्स दूसरों की वजह से ही ये उपलव्धि पा सके हैं हमारी वजह से नहीं .और कुछ बस का नहीं है तो इन्सान भी बने नहीं रह सकते . ऐसा नहीं है की राजेश गुलाटी कोई पहला पति है ऐसा करने वाला इससे पहले तंदूरकांड ,मगरमच्छ कांड भी हो चुके हैं .पति दुआरा पत्नी तंदूर में झोंकी जा चुकी है ,मगरमच्छ के आगे फेंकी जा चुकी है . उस अबला की बात उस समय किसी ने इस लिए नहीं सुनी होगी क्यों की समाज इतना जागरूक नही था .लोग पढ़े -लिखे भी नहीं थे ,बेटे दुआरा किये षड्यंत्र को सोच भी नहीं सकते थे .लेकिन आज समाज जागरूक और समझदार है तब भी सारी बर्जनायें,सारा दोष स्त्री के हिस्से ही आता है . अगर पति किसी से पत्नी की शिकायत करे तो उसे यही नसीहत दी जाती है ”कैसे मर्द हो एक औरत तुमसे नही संभलती”और पत्नी पति की शिकायत करे तो भी ये ही कहा जाता है -सारा दोष तुम्हारा है स्त्री चाहे तो क्या नहीं कर सकती है ? स्त्री ने तो ऋषि -मुनियों की तपस्या तक भंग की है राजाओ के सिंहासन तक हिला दिए हैं , तुमसे तुम्हारा पति नहीं संभलता . दोनों ही नसीहतें बिल्कुल गलत हैं स्त्री न तो खेलने की चीज है न साज श्रंगार का महज एक सामान .सम्बन्ध आत्मीयता से मजबूती पकड़ते हैं आँखों ,बातों या लातों से नहीं .
समस्या सारी यही है समाज आज भी स्त्री को हाड़-मांस की बेजान गुड़िया ही समझता है वैसे ही उससे पेश आना चाहता है और यही अब उसे स्वीकार नहीं ,अब उसे भी दुनिया का ज्ञान है ,अपने अस्तित्व की पहचान है वो भी स्वाभिमान के साथ जीना चाहती है .सम्मान देने के साथ सम्मान पाने की कामना भी रखती है यही पति को असहनीय है वो अब भी यही चाहता है की सब कुछ चुपचाप सहन करो ऐसा नही होगा तो मार खाओगी.निर्दोष होते हुए भी सारे आरोप खुद पर आते देख उसे समझ में नही आता है की क्या करे? फिर खुद भी अपने -आपको ही कसूरवार मान लेती है .एक निरपराधी को अपराधी मानने को विवश करना कहाँ तक उचित है ? लेकिन सोचना समाज को ही है .ऐसा नहीं है की कुछ हो नहीं सकता .पिछले बर्ष की घटना है एक युवक ने पत्नी को पीट -पीट कर मार डाला. पुलिस पहुंची .लोगों ने एक -एक करके बोलना शुरू किया -बेचारी को अक्सर पीटता था .एक बार तो बेल्ट आंख में लगी थी ,एक आंख ख़राब हो गई थी ,दूसरे ने कुछ और बोलना शुरू किया सुनते-सुनते पुलिस बौखला उठी और तमाशाबीनो को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा सिर्फ इसलिए कि जब वो मौत के मुंह में जा रही थी तो कोई बचाने नहीं आया अब मौत पर अफ़सोस जता रहे थे. बाद में पुलिस ने लोगों को चेताया -अगर कुछ कर नहीं सकते थे तो हमें इन्फोर्म तो कर सकते थे .कहीं न कहीं तुम लोग भी इसके अपराधी हो. एक बकील साहब आगे आये हैं उन्होंने ये जिम्मा उठाया है देखा -देखी किसी पर अत्याचार नहीं होने देंगे .लेकिन ये काम न पुलिस का है न बकील साहब का अगर हर व्यक्ति इंसानियत को आगे रखते हुए अपने परिवार ,पड़ोस ,नाते -रिश्तेदार या मित्र कोई ऐसा हो तो उसे समझाने का प्रयास करें हो सकता है तस्वीर कुछ बदल जाए . ऐसा नहीं है कि पति-पत्नी के रिश्ते में खटास आ जाए तो किसी को पता नहीं चलता हो, जरुर पता होता है,लेकिन लोग सिर्फ तमाशा देखते है जो सही नहीं है .ये भी सही है क़ी दूसरों क़ी व्यक्तिगत जिंदगी में दखल नहीं देना चाहिए लेकिन जब हम किसी के जख्मो पर नमक -मिर्च छिड़कने का काम कर सकते है , तो मरहम लगाने का काम क्यों नहीं कर सकते ?
दुष्यंत जी ने लिखा है –
बढ चली है पीर पर्वत सी, पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा, निकालनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना, मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश ही क़ि , ये सूरत बदलनी चाहिए
ये सबकी कोशिश होनी चाहिए .सही राह पर चलने की कोशिश में रुकाबट भले ही आये सफलता मिलती जरुर है .दूसरे देश रोबोट से तक क्या से क्या करवा रहे है फिर हम तो मनुष्य हैं.
आप सभी को नवबर्ष मंगलमय हो .
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