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क्या बला का खूबसूरत दौर है ..

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फिल्म जगत हो, फैशन जगत हो, खेल जगत हो, कार्पोरेट जगत हो या कोई और क्षेत्र, हर जगह राजनीति हावी है .ऐसा लगता है राजनीति के आगे सब लाचार हैं .कुछ लोग तो इन लोगों के बनाये चक्रव्यूह में अनजाने ही फंस जाते हैं और कुछ लोग जानबूझकर कुछ फायदे के लिए खुद को धकेल देते हैं .आजकल एक महिला दुआरा विधायक की हत्या चर्चा का विषय बना हुआ है .यह तो स्पष्ट है हत्या का कारण कोई छोटा नहीं रहा होगा .चूंकि यह महिला विधायक के घर तक पहुँच गयी तो उसका आना -जाना पहले भी होता रहा होगा वरना किसी अजनबी का प्रवेश इतनी आसानी से नहीं हो पाता.सच्चाई जो भी रही हो ,लेकिन हमारे देश में अब ऐसे नेताओं की कमी नहीं है .इससे पहले भी मधुमिता हत्याकांड ,कविता कांड ,जैनी कांड हमारे सामने आ चूका है .हतप्रभ करने वाली बात इतनी सी है कि इस वार हत्या भुक्तभोगी दुआरा हुई है .
राजनीति से जुड़ कर व्यक्ति सिर्फ पक्ष या विपक्ष की राजनीति नहीं करता वल्कि उसका हर कदम राजनीति से प्रेरित होता जाता है फिर पांव के नीचे कोई ही क्यों न आ जाये.अब तक सभी देख चुके हैं की कुछ नेताओं ने अपनी बेटियों के अरमानों का खून किस तरह किया .एक दमदार नेता के घर के एक अधेड़ सदस्य ने जबरदस्ती उठाकर अपनी बेटी से भी छोटी उम्र की लड़की को पत्नी बना लिया. थोड़े दिन बाद एक्सीडेंट में अधेड़ की म्रत्यु हो गई .उस लड़की ने गुहार लगाई अब तो मुझे जाने दो .लेकिन सोचा गया एक्सीडेंट को हत्या करार देकर क्यों न इसे ही चुनाव लडवा दिया जाय.घर के एक अन्य सदस्य से जो दो बच्चों का पिता था से उसकी मांग में सिन्दूर भरबा दिया .उसकी पत्नी तिलमिलाई तो उसे धमकाया गया घर से ऐसे निकालेंगे समाज में जगह न मिलेगी .ये बात लोगों को पता नहीथी .वो चुनाव जीत गयी .आश्चर्य करने वाली बात यह थी कि जब वह दुवारा चुनाव लड़ी तब भी पोस्टर पर लिखा था स्व० फलांसाहब की पत्नी को वोट दें .वाह रे राजनीति, घर में वो सधवा है और बाहर बिधवा .जाहिर सी बात है उसके कोई संतान भी नहीं होगी लेकिन सारी उम्र घर में सौतियाडाह तो बाहर अधेड़ की विधवा का अभिनय दोहरी आग में जलना है.
बाबा रामदेव से जब रजत शर्मा ने यह पूछा- कि बाबा लोग बहुत बदनाम हो रहे हैं, तो उन्होंने कहा- कि वे बाबा रावण जैसे हैं .रावण भी तो ज्ञानी था और साधू वेश में आया था साथ ही उन्होंने अपने साथ घटी घटनाएँ सुनाकर कहा कि -मैंने खुद को बचा लिया लेकिन वे अपने को इस जंजाल से नहीं बचा पाए .उन्होंने स्पष्ट भी किया कि “-इंसान, नेम और फेम को देख कर किसी के प्रति आकर्षित हो जाता है फिर भाबनाओं में बहकर यह भी चाहता है कि वह नामी व्यक्ति सिर्फ उसी का होकर रहे “.लेकिन यह प्रवर्ति घातक है .महिलाओं को बहुत सोच -समझ कर चलने की जरूरत है ,क्यों कि जरा से पागलपन या स्वार्थ पूर्ती के लिए अपना सम्मान और प्राण दोनों दांव पर लगा देना कहीं की समझदारी नहीं है और यहाँ की राजनीति बहुत घाघ राजनीति है उससे निपट पाना फिर आसान नहीं है .फिर सारी बोल्डनेस और हाईथिंकिंग धरी रह जाती है.
उमाशंकर तिवारी जी ने लिखा है-
क्या बला का खूबसूरत दौर है
आदमी हर पल यहाँ कुछ और है
यह खूबसूरत होने के साथ -साथ बहुत खतरनाक दौर भी है .और हर कदम बहुत ही साबधानी से उठाने की जरूरत है .

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