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बम्बई बिछड़ी बहिना है, लाहौर बिछड़ा भाई है…

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इन दिनों आईएनए के दिल्ली हाट में नेशनल एसोसिअशन ऑफ़ क्राफ्ट पीपल दुआरा आयोजित “क्राफ्टिंग फ्रेंडशिप” मेला चल रहा है. इस मेले में अफगानिस्तान, बंगलादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका और पाकिस्तान से आये लगभग १९० कलाकार भाग ले रहे हैं. लेकिन चर्चे सिर्फ पाकिस्तान से आये कारीगरों और हिंदुस्तान के कारीगरों के बीच बढती दोस्ती को लेकर ही हो रहे हैं. नेशनल एसोसिअशन ऑफ़ क्राफ्ट की संस्थापक जया जेटली का कहना है की ऐसे कार्यकर्मों के आयोजन का उद्देश्य न सिर्फ कला में निखार लाने को एक मंच देना है बल्कि देशों में परस्पर मैत्री सम्बन्ध स्थापित करना भी है.
जया जी हिंदुस्तान के सारे समझदार ऐसा ही सोचते हैं. हमारे यहाँ के डॉक्टर वहाँ के लोगों का इलाज मुफ्त में कर देते हैं, ताकि दोनों देशों के संबधों में निकटता आये. हमारे यहाँ, वहाँ के शायरों, संगीतकारों, गायकों और अभिनेता अभिनेत्रियों को भी न सिर्फ मंच वल्कि बाज़ार भी उपलब्ध कराया जाता है ताकि संबंधों में और मजबूती आये, टी.वी चैनल बतौर खेल बिश्लेशक वहां से खिलाडियों को भी बुला लेते हैं. छोटे उस्ताद कार्यकर्म में छोटे-छोटे बच्चे भी गाना गाने आ गये, उनके माता पिता गदगद होकर कह रहे थे कि दोनों देशों के सम्बन्ध मजबूत हो रहे हैं. हम भी अभिभूत हैं ये कह – कह कर दोनों देशों के सम्बन्ध मजबूत हो रहे हैं, कितने हो रहे हैं? दुनिया भर को पता है लेकिन हमें पता नही है सच तो ये है वहां कि अवाम यहाँ से भरपूर लाभ उठा रही है, थोड़ी वाह – वाह भी कर देती है तो उनके पास से कुछ चला थोड़े ही जाता है.
यहाँ के लेखकों, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों की ओर से पाकिस्तान की तरफदारी कुछ समझ में नही आती. शायद आतंकबाद से उन्हें को नुकसान नही पहुंचता इसलिए. एकबार खुश्बंत जी ने लिखा था की मानवाधिकार कार्यकर्ता आसमा जहाँगीर और उनके साथ कुछ लोग खुश्बंत जी के यहाँ रात्रि के भोजन के लिए आये थे. वे लोग हिंदुस्तान से बहुत नाराज़ थे, उनके हिसाब से कारगिल जंग के लिए भारत ही दोषी था जिसमें अनगिनत पाक सैनिक मारे गये. खुश्बंत जी भी उनकी शिकायत से सहमत थे तब मैंने उनके लेख पर कमेन्ट भी लिखा था ” कि आप जैसे लोग खाते यहाँ की हैं ओर गाते वहां की हैं ” मैंने उन सैनिकों के नाम भी गिनाये थे जिनको पाकिस्तान के सैनिकों ने बर्बरता पूर्वक मारा था.
संबाद तो चलते ही रहना चाहिए पर भारत की सरकार और यहाँ के लोग जिस तरीके से घुटने टेकते हैं वो समझ से परे हैं. जब आगरा सम्मिट होने बाली थी उस समय जैसा माहौल बनाया गया था उसे मैं कभी नही भूल सकती. रविवार को दूरदर्शन पर जो रंगोली का कार्यक्रम आया था उसमें सिर्फ कब्बाली ही दिखाई गयीं थी. टी.वी पर कला संस्कृति के अन्तरगत मुगलों की स्थापत्य कला की खूब सराहना की गयी. भारत शुक्रगुज़ार लग रहा था मुगलों का. ऐसा लग रहा था कि अगर शाहजहाँ न होता, ताजमहल न होता तो भारत, भारत न होता. समाचार प्रभाग ने तो और भी कमाल कर दिया था. कहा गया कि लता मंगेशकर, गायिका नूरजहाँ के आगे कहीं नहीं ठहरतीं. उसके बावजूद भी आगरा सम्मिट का क्या हाल हुआ था, मुशर्रफ साहब हमारे घर में बैठ कर हमें ही उल्लू बना कर चलते बने थे. फिर इसी अवाम ने कैसे भारत को कोसा था, किसी को याद भी है?
चाहे जितने प्रयास कर लिए जाएँ पर पाकिस्तान कभी नही सुधरेगा क्यों कि बेचैन रहना पाकिस्तान की नियति है न वो कभी चैन से जियेगा न हमें जीने देगा. हम उसका न कभी बुरा चाहते थे न चाहते हैं लेकिन वो इस बात को कभी नहीं समझेगा और न ही इस भावना को. एक शेर है जिसने भी लिखा होगा कितनी गहरी भावना के साथ लिखा होगा-
बम्बई बिछड़ी बहिना है, लाहौर बिछड़ा भाई है.
क्या कभी बहिना ने, भाई पर तलबार उठाई है?

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