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मुम्बई फिल्म इंडस्ट्री पर कभी बाहर से तो कभी आपस में ही ,कभी कहानी तो कभी गीत -संगीत चुराने का आरोप लगता ही रहता है .कवि सम्मेलनों और मुशायरों के मंच अखाड़े तक बन चुके हैं ,नामचीनों में जूतम -पेंजार हो चुकी है कि तूने मेरी कविता चुरा ली कि तूने मेरी शायरी चुरा ली .पिछली बार गुलजार साहब ही इब्न्वतूता पर सफाई देते फिरे थे,उन पर हिंदी कविता चुराने का आरोप था .पकड़े जाते हैं लोग ,फिर भी चोरी करने कीआदत नहीं छोड़ते .डॉ उर्मिलेश ने ऐसे ही लोगों के लिए लिखा होगा –
मेरी टांगें मांग कर वो मेरे बराबर हो गये
मेरे ही शेर पढ़ के वो भी शायर हो गये
मै बात इस मंच की करूं तो चोरी की बात नई नहीं है तीन रचनाएँ जो कि फीचर्ड भी हुई थीं ,कमेन्ट भी खूब मिले थे और ज्यादा चर्चित ,पठित में भी उनको स्थान मिला था .जब मैंने ये देखा था तो बहुत अचम्भित हुई थी कि किसी की सोच इतनी भी मिल सकती है .पंक्तियाँ भी वैसी हो सकती हैं लेकिन थोड़े हेर -फेर के साथ पूरी रचना ऐसी ही हो ,ऐसा नहीं हो सकता .मैंने इशारा भी करना चाहा था मगर मेरे संस्कार इसकी अनुमति नहीं देते .न तो मै किसी का दिल दुखाना चाहती हूँ ,न ही कोई विवाद खड़ा करना चाहती हूँ और न विवादों में पड़ना चाहती हूँ .मेरा तो इस मंच पर आने का जो उद्देश्य है बस मुझे वही याद रखना है लेकिन कल जब राजकमल शर्मा जी का लेख देखा तो लगा मुझे भी बोल ही देना चाहिए .जब पहली बार मैंने एक रचना देखी तो मन -मस्तिष्क में बिजली सी कौंध गयी थी ,सहसा लंदन के बुश हॉउस में बैठी बी बी सी हिंदी सेवा की अध्यक्ष अचला शर्मा के मुहं से पढ़ी गयीं नन्द कुमार अटवाल की पंक्तियाँ मेरे दिमाग में घूम गयीं .ऐसा ही दो बार और भी हुआ जब राही मासूम रजा की नकल भी देखने को मिली .लेकिन जिन लोगों ने ऐसा किया था वो इस वक़्त सकते में आ गये होंगे .
एक बात और कम या ज्यादा कमेन्ट पाने से ही कोई लेख या रचना अच्छी या बुरी नहीं हो जाती .मैंने यहीं देखा है कि बहुत ही अच्छे लेख एक भी कमेन्ट नहीं पा पाते,इसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि इस आपाधापी भरी जिन्दगी में लोगों के पास इतना समय नहीं है बस एक नजर डालना ही काफी होता है .फिर एक लेखक का उद्देश्य सिर्फ प्रसंशा बटोरना ही रह गया तो वो अपने लेखन के प्रति ईमानदारी और उद्देश्य दोनों से भटक जायेगा और भटके हुए राही कभी मंजिल नहीं पाते .मैंने ऐसे भी मंच देखे हैं जहाँ ब्लागर्स आपस में एक -दूसरे को कमेन्ट नहीं कर सकते ,मुश्किल से पाठकों दुआरा एक ,दो कमेन्ट ही मिल पाते होंगें या फिर कई लेखों को मिल भी नहीं पाते लेकिन फिर भी ब्लागर्स पूरी लगन के साथ अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित किये हुए हैं और ऐसा ही होना भी चाहिए .मेरा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं है फिर भी ऐसा हुआ हो तो क्षमा चाहती हूँ .
हमारी मंजिलें बेकार लेकिन
हमारे रास्ते अच्छे लगेंगे
( शीन काफ निजाम )
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