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जमीं की कैसी भी हो वकालत फिर नहीं चलती ….

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यों तो टी .वी देखने का मुझे विल्कुल भी शौक नहीं है ,लेकिन जब से ओसामा मरा है .एक -एक करके सारे न्यूजचैनल खंगालती रहती हूँ ,इस लिए नहीं कि मुझे न्यूज देखनी होती है वल्कि इस लिए कि जैसा एक्शन ,इमोशन ,सस्पेंस के घालमेल का मनोरंजक ड्रामा इस समय चल रहा है फिर नहीं होने वाला .कभी -कभी मुझे संदेह होता है कि अमेरिका कह रहा है कि आपरेशन लादेन की खबर किसी को नहीं थी फिर भारतीय मीडिया को सब कैसे पता चला कि कब ,क्या,कैसे हुआ ?ऐसा लगता है जैसे उस समय सूरदास जी बंद आँखों से यशोदा के आंगन का कोना -कोना झांक आये थे, इस समय मीडिया वाले एतबाबाद हवेली का कोना -कोना झांक आये हैं . मै सोचती हूँ कि जब निठारी में कितने मासूमों को हलाल किया गया था ,इधर तो मीडिया का जमाबडा ही है उस समय भी पता चल गया होता कि कब ,क्या ,कहाँ ,कैसे किया जा रहा है तो कितने मासूमों कि जान बच गयी होती ?बाद में भी ये ही पता लगा लिया होता कि पर्दे के पीछे और कौन -कौन था ?तो उनकी आत्मा को शांति जरूर मिल गयी होती .मीडिया का कम इतना भर नहीं है कि क्या हुआ उसको ही कवर करे वल्कि उसकी जिम्मेदारी यह भी बनती है कि इस पर भी नजर रखे कि क्या हो सकता है .और जो गुत्थी नहीं सुलझी है उसको सुलझाने में भी अहम भूमिका हो सकती है .
ओसामा ने निरीह जनों का खून बहाया था .वो गुनाहगार था ,उसे सजा मिलनी भी चाहिए थी .लेकिन अमेरिका की जगह कोई और देश रहा होता तो अब तक तो दुनिया -बिरादरी में उसका हुक्का -पानी बंद हो गया होता और उसे उसके गुनाह कि सजा देने कि तयारी चल रही होती .अमेरिका ने हिंदुस्तान की पीड़ा को कभी नहीं समझा .जो अमेरिकी मारे गये थे उनमें जान थी तो यहाँ के लोग भी माटी के खिलौने नहीं थे .अगर कभी भारत ने पाकिस्तान की तरफ नजरें तिरछी की भी तो हमेशा अमेरिका ने भारत के कान उमेठे हैं ऐसे अमेरिका आतंकबाद से निपटने में भारत का सहयोग कर सकेगा ?अब तो पाक को न छोड़ना उसकी मजबूरी है ,वो तो हमेशा ही पाक के ज्यादा करीब रहा है . लेकिन अमेरिका को यह नहीं भूलना चाहिए कि नाग किसी के वफादार नहीं हुए हैं ,वो दूसरों के लिए उन्हें जहरीला बनाएगा ,क्या पता किसी दिन उसी को डंस बैठे .एक उदाहरन काफी नहीं है क्या ?
भारत में छोटी -छोटी घटनाओं पर मानवाधिकारों के उल्लंघन के नाम पर हाय -तौवा मचाने लोग पता नहीं कहाँ लापता हो गये हैं ?भारत सरकार को जो पक्ष रखना था सो रख दिया .वोट बैंक दिग्गी राजा संभाल ही रहे हैं .लेकिन कांग्रेस प्रचारित यूथ आइकान और भावी प्रधानमन्त्री का कुछ तो बयाँ आना ही चाहिए था.वैसे बहुत से लोग इनकी भी टिप्णी सुनने को बेताब होगे जैसे -मुलायम सिहं ,अमरसिंह ,लालू जी ,तीस्ता जी, मायावती जी और हाँ मैडम आसमांजी .
अब दाउद को घेरने की बात हो रही है तो सांप निकल जाने के बाद लाठी पीटने की भरतीय नेत्रत्व की पुरानी आदत रही है .सैनिकों ने जो जी -जान लगा कर सौंपा है उसे ख़ुशी -ख़ुशी मेज पर गंवाया है .
किसी भी व्यक्ति के लिए उसके कर्मों के हिसाव से कुछ दुआएं मिलती हैं तो कुछ बद दुआएं .असर दोनों का ही होता है .जब वह परेशानियों में घिरता है तो बद दुआएं काम कर रहीं होतीं हैं और जब वह उनसे निपटने में कामयाब रहता है तो दुआएं काम कर रहीं होतीं हैं .एक बात बुजुर्गों के मुहं और सुनी है कि ईश्वर इंसान से सिर्फ खेलता है. जिसे सुख -समपन्नता,शक्ति देता है तो अति कर देता है जिसमें अँधा होकर मनुष्य क्या कुछ गलत नहीं कर बैठता है , फिर बारी आती है दुखों की ,जिसको दुःख देता है तब भी अति कर देता है .कभी -कभी तो उसका अस्तित्व ही मिटा कर रख देता है.
मुझे पता नहीं ये बातें कितनी सही हैं, कितनी गलत हैं .लेकिन एक बात तो है अभी जो अरब देशो में हुआ ,सद्दाम का जो हश्र हुआ और अब लादेन की बर्बादी देखी.उधर अमेरिका एक शक्ति-समपन्न देश है उसका डंका भी बज रहा है और डंडा भी .कितना गलत कर रहा है कितना सही ये ईश्वर भी देख रहा है और दुनिया भी .देखना ये है कि ये बातें कभी आतंक बादियों के इरादों ,कुकर्त्यों और अमेरिका पर भी लागू होंगी .मुझे लगता है निश्चित होंगीं समय भले ही कितना ही लगे .
बसीम वरेलवी की नसीहत सबके लिए है –
जमीं की कैसी भी हो वकालत फिर नहीं चलती
जब आसमान से कोई फैसला उतरता है

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